*मृत्यु भोज पर कविता*
जिस आँगन में पुत्र शोक से
बिलख रही माता,
*वहाँ पहुच कर स्वाद जीव का तुमको कैसे भाता।*
पति के चिर वियोग में जब व्याकुल युवती विधवा रोती,
*बड़े चाव से पंगत खाते तुम्हें पीर नहीं होती।*
मरने वालों के प्रति अपना सदव्यहार निभाओ,
*धर्म यही कहता है बंधुओ मृतक भोज मत खाओ।*
चला गया संसार छोड़ कर जिसका पालन हारा,
*पड़ा चेतना हीन जहाँ पर वज्रपात दे मारा ।*
खुद भूखे रह कर भी परिजन तेरहवी खिलाते,
*अंधी परम्परा के पीछे जीते जी मर जाते।*
इस कुरीति के उन्मूलन का साहस कर दिखलाओ
*सच्चा धर्म यही कहता है बंधुओ, मृतक भोज बन्द कराओ।*
मृत्यु भोज पर कविता